जय गिरीश हरे गुन गंगा। जय उमा राम सदा सुहंगा॥
जय गंगाधर त्रिपुरारी। जय देव शंकर करिहु सुखकारी॥
नन्दि कुमान सनमुख वंदना। गद जो देहि अधीष भव भंजन॥
सप्त मुथा प्रभु ध्यान लगाये। सन्त करहि सकल तात भयो॥
हे गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चंद्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाए। मुण्डमाल तन छार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
मैना मातु की है दुहाई। तामस रूप तिहु लोक दिखाई॥
नंदी गन बैल सवारी। कर त्रिशूल सोहत छवि भारी॥
काटि काल सकल पर भारी। सदैव सर्व सुखकर कारी॥
प्रभु पाताल बसहि नभ माहीं। काल अमंगल नाथ कहाहीं॥
आपहि शिव नाम स्वरूपा। नन्दि सुत मंत्र जापलूपा॥
राम सख्ह पुर धाम बढाई। सदा कल्याण कृपा कराई॥
गई न परैव खरसुधि लहै जो। रघुवीर प्रभु हो जो गहै तो॥
शरण के भोले करुना सिन्धु। मान प्रद सुन्दर शुभ गंधु॥
सतयुग त्रेता द्धापर काली। नमन करे जो सदा सुख पाली॥
राक्षस मारि राम को लाये। रघुकुल हर्षित सब सुख पाये॥
लंक में विजय उमा हरि पाई। सब दुःखों से शान्ति हर्षाई॥
चारों वेद कहत शुभ कथा। स्वर्ण हरी साजि सुंदर पाता॥
भुक्ति मुक्ति पुरसार सविता। गिरिजा भरण प्रभु नीख विकार॥
अब प्रभु मेरो अरज सुनाई। कीजै पूर्ण आश सबाई॥
जय जय जय धुनि उठावे। हरिहर वन्दन सब सुख लावे॥